Grapes in Hindi
अंगूर की जन्मभूमि काकेशिया तथा उसके सीमान्त प्रदेश हैं। पर कुछ लोगों का विश्वास है कि सर्वप्रथम इसे रूस के आरमीनिया प्रान्त में उगाया गया उसके बाद यह शीतोष्ण कटिबन्ध के क्षेत्रों, पश्चिमी एशिया, दक्षिणी यूरोप, मोरक्को तथा अल्जीरिया आदि देशों में फैला और अब तो आस्ट्रेलिया, अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तथा भारत आदि संसार के शेष देशों में भी अंगूर सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है।
हमारे देश भारत में यह प्रायः समस्त शीतप्रधान स्थानों में पैदा होता है। किन्तु कश्मीर, कुमायूं, 'कनावर, देहरादून आदि हिमालय के समीपवर्ती प्रदेशों में, और नासिक, पूना, औरंगाबाद, दौलताबाद आदि दक्षिण के प्रान्तों में यह बहुतायत से होता है।
परन्तु भारतवर्ष के अंगूरों की अपेक्षा सीमान्त प्रदेशों, खासकर अफगानिस्तान और ईरान के अंगूर काफी मीठे और गुणकारी होते हैं। अंगूर की बेल होती है। इसकी जातियाँ और भेद भी कई होते हैं । हेटा, कलमक, तथा हुसैनी आदि इसके मुख्य भेद हैं। आजकल हमारे देश में अंगूर की अमेरिकन, यूरोपियन, तथा आस्ट्रेलियन आदि किस्में भी पैदा होने लगी हैं, जिनके फल उतने ऊँचे दर्जे के नहीं होते।
अंगूर को संस्कृत में द्राक्षा, रसा, मधुरसा, अमृतरसा, स्वाद्वी, मृद्वीका इत्यादि; हिन्दी में अंगूर, दाख; गुजराती में द्राख, मुद्रक ; मराठी में द्राक्ष; तेलंगी में द्राक्षपेड ; बँगला में द्राख्या, आँगुर; कनाड़ी में द्राक्षे; अंग्रेजी में ग्रेप्स (grapes) और वाइन (vine); तथा लैटिन में वाइटिस वाइनीफेरा (vitis vinifera) कहते हैं।
अनुमान है कि आजकल सारे विश्व में कुल मिलाकर ४००० किस्मों का अंगूर बोया जाता है। रोपने के ४ वर्ष बाद अंगूर की लता फलने लगती है। और लगभग १०० वर्ष से भी अधिक समय तक फल देती रहती है। अंगूर में ग्लूकोज शर्करा पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होती है, जो किसी भी अन्य फल में इतनी अधिक मात्रा में नहीं पायी जाती । अंगूर में यह विशिष्ट शर्करा ११ से ५० प्रतिशत तक पायी जाती हैं । अंगूर की यह शर्करा पचापचाया भोजन होता है जो सेवन के थोड़े ही देर बाद सेवन करने वाले के शरीर को ऊर्जा, स्फूर्ति और शक्ति प्रदान करती है।
अंगूर में कोनसा अम्ल पाया जाता है।Angoor me konsa amal hota hai
अंगूर अम्लीय फलों की श्रेणी में रखा गया है। इसमें मलिक, टारटरिक तथा रेसीनिक अम्ल होते हैं । ये कार्बनिक अम्ल आँतों तथा गुर्दो को सक्रिय रखते हैं। परन्तु यह बात ध्यान देने योग्य है कि अम्ल प्रधान होते हुये भी अंगूर का शरीर में अन्तिम प्रभाव क्षारीय ही होता है। लियोसिअर के अनुसार अंगूर का एक किलो रस शरीर को उतनी ही क्षारी- यता प्रदान करता है जितनी छः किलो सोडियम बाईकार्बोनेट ।
Angoor me konsa vitamin hai
अंगूर में ०.८ प्रतिशत प्रोटीन, ०.१ प्रतिशत वसा, १०.२ प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, ०.०२ प्रतिशत कैल्सियम, ०.०२ प्रतिशत फॉस्फोरस, १.३ मि० ग्रा० प्रति १०० ग्राम लोहा होता है। इसके अतिरिक्त प्रति १०० ग्राम अंगूर में विटामिन ए १५ यूनिट, विटामिन बी १५ मि० ग्रा० और विटामिन सी १० मि० ग्रा० होते हैं।
१०० ग्राम अंगूर सेवन करने से ४५ कैलोरी ऊर्जा की उपलब्धि होती है। अंगूर में जल तथा पोटैशियम लवण की समुचित मात्राएं होती हैं। इसमें अल्प मात्रा में ऐल्बूमेन तथा सोडियम क्लोराइड भी होते हैं। 1 इस तरह अंगूर में वे सभी जीवनतत्त्व मौजूद है जिनकी शरीर की पुष्टि के लिये आवश्यकता होती है। फलतः एक अंगूर पर रहकर मनुष्य अपना जीवन निर्वाह कर सकता है। पका अंगूर किंचित् दस्तावर, शीतल, नेत्रों को हितकारी, पुष्टिकारक, रस व पाक में मधुर, स्वर- शोधक, रक्तशोधक, वीर्यवर्द्धक तथा शरीर स्थित विजातीय द्रव्य को निकालने वाला होता है।
अंगूर के स्वास्थ्यवर्द्धक गुण
भारतीय चिकित्साशास्त्र के प्राचीन आचार्य वागभट्ट के अनुसार अंगूर का रस आँतों तथा गुद्दों की कार्यक्षमता को बढ़ाता है । सुश्रुतसंहिता में भी इसे बहुत पुष्टिकर माना गया है । अंगूर कब्ज को होने नहीं देता, यकृत-विकारों में लाभकर सिद्ध होता है, अतिसार को मिटाता है, तथा पाचन-संस्थान की क्रिया को सुचारू रूप से चलने में सहायता करता है।
अंगूर की अधिक पैदावार करने वाले देश, विशेष- कर मध्य युरोप में स्वास्थ्य सुधारने तथा अनेक रोगों की चिकित्सा के लिये केवल अंगूर से उपचार किया जाता है । रक्त-निर्माण में अंगूर का रस एक महत्व- पूर्ण भूमिका निभाता है ।
Kismis khane ke fayde
सूखे अंगूर यानी मुनक्का के नित्य सेवन से थोड़े ही दिनों में रस, रक्त, शुक्र और ओज सब धातुओं की वृद्धि होती है । वृद्धावस्था में किशमिश-मुनक्के का प्रयोग न केवल स्वास्थ्य की रक्षा करता है, बल्कि आयु को बढ़ाने में भी सहायक होता है । किशमिश और मुनक्का की शर्करा चूँकि शरीर में अति शीघ्र पचकर आत्मसात् हो जाती है, इसलिये इनका शुभार बलवद्ध्धक भोजन वर्ग में किया जाता है।
Angoor khane ke fayde
1.आँतों का क्षय)-अंगूर का कल्प करने से आँतों के क्षय में लाभ होता है। कल्प की रीति इस प्रकार है :- प्रथम दिन हर २ घण्टे बाद २-२ छटांक अंगूर खाये । इस प्रकार ८ बार में १ किलो या १ सेर अंगूर खायेँ । दूसरे दिन से प्रति-दिन आधा सेर अंगूर बढ़ाते-बढ़ाते ५ से ६ सेर तक अंगूर पेट में पहुँचा दें। अब जिस प्रकार अंगूर की मात्रा क्रमशः बढ़ाया था, कल्प को समाप्त करने के लिए उसी प्रकार अंगूर को धीरे-धीरे कम करें और अन्ततः कल्प समाप्त कर दें । इसी प्रकार अंगूर और दूध का भी कल्प किया जाता है।
2.ब्रान्काइटिस)-मुनक्के को बादाम और अदरक के साथ पीसकर सेवन करने से कुछ ही दि नों में ब्रान्काइ- टिस ठीक हो जाती है ।
3.जुकाम)-गरम पानी के साथ मुनक्का लेने से जुकाम ठीक हो जाता है ।
4.रक्ताल्पता)-काला मुनक्का कागजी नींबू के रस में भिगोकर खाने के रक्ताल्पता मिटती है । रोज केवल १० औंस अंगूर का रस पीते रहने से भी रक्ताल्पता में लाभ होता है ।
5.वजन कम हो)-रोज रात्रि के समय ११ मुनक्का खाकर और ऊपर से स्वच्छ जल पीकर सो जायँ । १ मास में क्षीणता दूर होकर शक्ति व वजन दोनों की व द्धि होगी।दूध के साथ मुनक्के को पकाकर मक्खन व मधु मिलाकर खाने से भी वजन बड़ी तेजी से बढ़ता है ।
6.उरःक्षत)-मुनक्का और धान की खीलें १-१ तोला लेकर १० तोला जल में भिगो दें, और २ घण्टा बाद्र मसलकर छान ले । फिर उसमें १ तोला शुद्ध मधु मिलावें तथा १ तोला मक्खन भी और धीरे-धीरे सबको चाट जायेँ, उर:क्षत ठीक हो जायगा ।
7.मुख की दुर्गन्ध)-मुनक्का खाने से मुख की दुर्गन्ध दूर हो जाती है ।
8.नेत्र)-विकार-दो तोले बीजरहित मुनक्कों को कुचलकर और समभाग शक्कर मिलाकर १ पाव जल में पकावें । जब आठवाँ भाग बच रहे तो उसे पी जायँ, नेत्र-विकारों में लाभ होगा ।
9.थकावट)-थकावट में किशमिश की चाय बडा गुण करती है। चाय इस तरह बनावें :- आध सेर जल में १३ छटांक किशमिश धोकर डालें और धीमी आँच पर पकावें जब आधा शेष रहे तो मसलकर छान लेवे और इच्छानुसार इसमें कागजी नींबू का रस मिलाकर पीवें ।
10.कोष्ठबद्धता)-आधी छटांक किशमिश, ३ मुनक्का और १ अंजीर को शाम के वक्त १ पाव पानी में भिगो दें। सुबह उठकर सबको खूब मसलकर और थोड़ा और पानी मिलाकर छान लें । तत्पश्चात् उसमें कागजी नींबू का रस निचोड़ें और २ चम्मच शहद मिलावें और सबको धीरे-धीरे पी जायँ । कुछ ही दिनों में कोष्ठबद्धता दूर हो जायेंगी ।
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