Sugarcane in Hindi
गन्ने को कई नामों से जाना जाता हैं।
sugarcane in hindi-ईख, ऊख, गन्ना, साँटा, तथा गांड़ों कहते हैं।
Sugarcane in English- सुगर केन (Sugar cane ), और लैटिन में सैकेरम आफिशिनेरम (Saccharum officinarum)
गन्ने का इतिहास
कहा जाता है कि पाषाण काल की कुछ जातियों को जंगली गन्ने के कुछ पेड़ों का सर्वप्रथम पता चला था, जिन्हें चूसकर वे 'रसविभोर' हो उठे थे। बाद में गन्ने की विधिवत् खेती होने लगी।
पाश्चात्य निघण्टु के अनुसार गन्ने की गणना तृण धान्य वर्ग ( Gramineae) में है। कहा जाता है कि आरम्भ में गन्ना एक मामूली घास था, जो धीरे-धीरे स्थूलता व मधुरता को प्राप्त कर आजकल का गन्ना बन गया।
मूलतः गन्ना भारत सहित दक्षिणी एशिया और दक्षिणी अमेरिका की फसल है। क्योंकि गन्ने का उल्लेख वेदों में तथा चरक और सुश्रुत संहिताओं में पाया जाता है, इसलिये गन्ने का मूल निवास या उत्पत्ति स्थान भारत को मानना गलत नहीं है । प्रिजनर प्रिसलिंग का कहना भी है कि गन्ने की मातृभूमि भारत ही है । जब दुनिया के लोग शक्कर का नाम भी नहीं जानते थे तब भारतीय उसे उत्पन्न करते थे।
डाक्टर स्ट्रेके ने लिखा है कि भारत में बड़ी बड़ी घासें मधुमक्खियों के बिना ही शहद पैदा करती हैं । उसका मतलब गन्ने से ही था।
सिकन्दर महान के भारतवर्ष पर आक्रमण के पहले २२७ ई० पूर्व उसके सैनिकों ने यह समाचार दिया कि भारतवासी एक प्रकार की छड़ी चबा रहे हैं जिसमें मधु संचित है । उस छड़ी का अभिप्राय निश्चय ही गन्ने से था।
इन तथ्यों से पता चलता है कि भारत से ही गन्ने का प्रसार पृथ्वी के अन्य भागों में हुआ। यूरोप के भूमध्यसागरीय अंचल में इसका आगमन अरबों के साथ सातवीं सदी में हुआ।
अधिक नहीं, चौदहवीं सदी में गन्ने का रस उत्तरी यूरोप में लगभग अज्ञात वस्तु था, और दक्षिणी यूरोप में वह केवल रईसों को ही उपलब्ध था। यह तो अभी हाल में, अर्थात् उन्नीसवीं सदी के आरम्भ में जब वैज्ञानिकों ने गन्ने के रस में कार्बोहाइड्रेट की खोज की और जिसे मानव-शरीर के लिये अत्यन्त लाभकारी बताया, तब कहीं जाकर यूरोप और उत्तरी देशों में इसका प्रयोग बढ़ा, और तभी से चीनी का उत्पादन भी आरम्भ हुआ, क्योंकि गन्ने के रस को एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने में कठिनाई और हानि दोनों होती थी। तब तक चीनी के अन्य स्रोतों का भी व्यापक प्रचार हो गया था- जैसे 'शुगर बीट', 'ताड़' और 'मैपुल' (एक प्रकार का मीठा पौधा जो मध्य अमेरिका में पाया जाता है)।
उन दिनों औद्योगिक क्रान्ति हो रही थी। प्रति वर्ष अनेक नई मशीनें बनती थीं। फिर क्या था, चीनी बनाने की मशीनें भी बनने लगीं। पहले काफी भूरी चीनी ही बनती थी। पर जैसे-जैसे मनुष्य पर आधुनिकता का भूत सवार होता गया और उसे नफासत में ही सभ्यता की प्रगति दिखाई देने लगी, वैसे-वैसे चीनी भूरी से सफेद होती गयी। इस प्रकार सफेद चीनी का प्रादुर्भाव हुआ।
गन्ने की फसल गर्म, आर्द्र, और उष्ण कटिबन्धी प्रदेशों में विशेष रूप से और बहुतायत से होती है। इसकी सबसे अच्छी उपज क्यूबा, जावा, भारत, हवाई द्वीप, मारीशस, फिलीपाइन, चीन, गयाना, तथा पश्चिमी हिन्द द्वीप समुदाय के द्वीपों में होती है। संसार की दो तिहाई चीनी क्यूबा, भारत और जावा में ही होती है। ब्राजील के पूर्वीय तट पर भी गन्ना काफी होता है । इन देशों के अतिरिक्त मिसीसिपी नदी का डेल्टा, अफ्रीका में नेटाल तथा आस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैण्ड में भी गन्ने की उपज काफी होती है।
Ganne khane ke fayde(Benefits of Sugarcane in Hindi)
मूत्राशय के रोग)-गन्ने के रस का सेवन करने से मूत्राशय के बहुत से रोग ठीक हो जाते हैं, विशेषकर मूत्रावरोध । मूत्रकृच्छ्र में अधिक लाभ के लिये गन्ने के ताजे रस में आमले का रस और शहद मिला लेना चाहिए। इसे भरपेट पीना चाहिए।
गन्ना-रस के पुराने सिरके का सेवन करने से भी मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है । मात्रा १ से २ तोला जल के साथ।
गन्ने के ताजे रस के अभाव में गन्ने की जड़ से काम लिया जा सकता है। उस हालत में गन्ने की ताजी जड़ का काढ़ा पीने से मूत्राशय के लगभग सभी रोगों अर्थात् मूत्र की रुकावट, व जलन आदि की शान्ति होती है।
गुड़ को आमलों के चूर्ण के साथ सेवन करने से भी मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।
स्त्री के स्तनों में दूध की कमी)-गन्ने की जड़ को पीसकर काँजी के साथ सेवन करने से स्त्री का दूध बढ़ जाता है।
नकसीर)-गन्ने का रस सुँघाने से नकसीर में लाभ होता है।
रक्तपित्त)-गुड़ को आमलों के चूर्ण के साथ सेवन करने से रक्तपित्त नाश हो जाता है।
थकावट)-परिश्रम से आई थकावट में ताजे गन्ने का रस पीने से थकावट तुरन्त मिट जाती है।
गर्म वस्तुओं के अधिक सेवन के दोष)-गन्ने का ताजा रस-पान, गर्म वस्तुओं के अधिक सेवन से पैदा हुये रक्तविकार, दाह, जलन आदि को शीघ्र ही दूर कर देता है।
कब्ज)-गन्ना के शुद्ध ताजे रस के साथ जौ की ताजी हरी घास पीसकर सेवन करने से कब्ज टूटता है।
मुख का छाला)-मिश्री के टुकड़े के साथ कत्थे का टुकड़ा मुख में रखकर चूसने से मुख के छाले दूर हो जाते हैं।
कम दिखाई देना)–मिश्री को जल के साथ घिस कर आंख पर लगाने से ठीक दिखाई देने लगता है।
बुढ़ापा-रोग)-मिश्री और घी मिले दूध का निय- मित रूप से सेवन करने से बुढ़ापा-रोग ठीक हो जाता है। यह घोल बुढ़ापे के लिये रसायन का काम करता है।
श्वास रोग)-गुड़ ३ माशा से १ तोला तक समान भाग सरसों के तेल में मिला २१ दिन सेवन करने से হ्वास रोग दूर हो जाता है।
हृदय-रोग)-गुड़ और घी को समभाग मिलाकर सेवन करने से हृदय-रोगों में लाभ होता है ।
वीर्य की कमी)-गुड़ को आमलों के चूर्ण के साथ सेवन करने से वीर्य की वृद्धि होती है ।
आम-शूल और अन्य उदर-रोग)-गुड़ के साथ बेलगिरी(Aegle marmelos) का चूर्ण मिला सेवन करने से लगभग सभी उदर-रोगों में लाभ होता है ।
वात-रोग)-गुड़ के साथ जीरा मिलाकर सेवन करने से वात रोगों में लाभ होता है ।
बवासीर)-गुड़ के साथ हरड़ का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से बवासीर ठीक हो जाती है ।
गुर्दे का दर्द)-गुड़ १ तोला और बुझा हुआ चूना आधा माशा, दोनों को एकत्र कर दो गोलियाँ बना लेवें । पहले १ गोली गर्म जल से लेवें । यदि दर्द की शान्ति न हो तो दूसरी गोली भी ले लेवें, अवश्य लाभ होगा।
प्रदर-रोग)-एक खाली बोरी जिसमें २-३ साल तक गुड़ रखा रहा हो लेकर जला डालें और राख को छानकर सुरक्षित रख लें । ६ माशे वह राख प्रतिदिन प्रातः प्रदर के रोगिणी को सेवन करावें । इससे प्रदर- रोग और मासिक धर्म के समय अधिक रक्त जाना केवल ७ दिनों में बंद हो जाता है ।
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